23.07.1969


"...एक स्लोगन और

याद करना जरूरी है।

"छोटों को करो प्यार

और बड़ों को दो रिगार्ड।"

 

 

प्यार देना है फिर रिगार्ड

लेना है।

यह कभी नहीं भूलना। ..."

 

 


28.09.1969


"...बापदादा के स्नेही बनेंगे,

परिवार के भी स्नेही बनेंगे।

तो सभी का सहयोग

स्वत: ही प्राप्त होगा।

 

 

मुख्य यही दो बातें है

निश्चयबुद्धि और नष्टोमोहा,

यह तो तिलक माथे

पर लगा ही दिया है।

 

 

स्लोगन भी याद रखना है

"जो कहेंगे वो करेंगे"

यह है

माताओं की सजावट।

 

 

मातायें श्रृंगार

ज्यादा करती हैं ना।

 

तो इन माताओं का श्रृंगार

रत्नों से किया जाता है।

सबसे चमकने वाला श्रृंगार

होता है रत्नों का।


सोने में भी रत्न होता है तो

जास्ती चमकता है।

 

तो बापदादा ने इन माताओं को

रत्नों से श्रृंगारा है।

क्योंकि

संगम पर सोने से भी ज्यादा

हीरा बनना है।


जितना-जितना अपने को

रत्नों से सजायेंगे उतना ही ना

चाहते हुए भी

दुनिया की नजर

आपके तरफ जायेगी।

 


दुनिया को कहने की

आपको दरकार नहीं होगी कि

हमारी तरफ देखो।

 

 

यह ज्ञान रत्नों का श्रृंगार

दूर वालों का भी

ध्यान खिंचवायेगा।

 

इसलिए इन रत्नों के

श्रृंगार को सदा के लिए

कायम रखेंगे

ऐसा निश्चय करना है।..."

 

 

 


16.10.1969


"...एक स्लोगन सदा

याद रखना कि

"जो बापदादा कहेंगे,

जो करायेंगे,

जैसे चलायेंगे,

वैसे ही करेंगे,

चलेंगे, बोलेगे,

देखेंगे।"

 

 

यह है पाण्डव सेना का

मुख्य स्लोगन।

जो कहेंगे वे सोचेंगे

और कुछ सोचना नहीं है।

 

 

इन आँखों से और कुछ

देखना नहीं है।

 

आखें भी दे दी ना।

पूरे परवाने हो ना।

 

परवाने को शमा बिगर

और कुछ देखने में

आता है क्या?

 

आपकी आखें और क्यों देखती?

जब और कुछ देखते हैं तो

धोखा देती है।

 

अपने को धोखा न दो।

इसके लिए परवानों को

सिवाए शमा के

और किसी को नहीं देखना है।

सम्पूर्ण अर्थात् पूरा परवाना हैं।..."

 


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